गृहमंत्री पी चिदम्बरम एक इंसान के तौर पर बहुत अच्छे है। सारा देश उनकी कद्र करता है। चिदंबरम ने दंतेवाड़ा हादसे की नैतिक जिम्मेदारी ली है। पूरे देश में एक गृहमंत्री के तौर पर चिदंबरम के प्रति सम्मान बढ़ गया है। लेकिन इसके साथ ही चिदंबरम ने एक कदम और जो उठाया है वो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है। देश में आंतरिक सिक्योरिटी को लेकर चिदंबरम का काम संतोषजनक ही कहा जाएगा। अब ये अलग बात है कि गृहमंत्री कहते हैं कि चूक हो गई। चलिए कभी-कभी चूक हो जाती है। लेकिन इस चूक को दोहराने वाला मानवता का दुश्मन ही कहलाएगा। शायद यही सोचकर चिदंबरम जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए प्रेसीडेंट सोनिया गांधी को पत्र लिखकर इस्तीफे की पेशकश की है। लगता है चिदंबरम मानवता के दुश्मन नहीं कहलाना चाहते हैं। चूंकि वे भी जानते हैं कि दंतेवाड़ा चूक भविष्य में भी हो सकता है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि इस तरह के चूक होते रहते हैं। सरकार कहती है कि अब हमसे चूक नहीं होगी। नक्सलियों का सफाया कर देंगे, लेकिन नक्सलियों का सफाया तो दूर उनका मनोबल भी सरकार तोड़ पाने में कामयाब नहीं हो पाती है। दंतेवाड़ा नरसंहार ऑपरेशन ग्रीन हंट का हश्र ही कहा जाएगा। एक तरफ गृहमंत्री नरसंहार की जिम्मेदारी लेते हैं और दूसरी तरफ इस्तीफा देकर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। यदि वाकई चिदंबरम जी को सीआरपीएफ के जवानों की मौत का दुख है तो फिर वे उनके हत्यारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं करते, क्यों इस्तीफे की पेशकश कर रहे हैं। कहीं ये जनता से सहानुभूति पाने का तरीका तो नहीं। खुद को आदर्श गृहमंत्री साबित करने की कोशिश तो नहीं। एक आदर्श राजनेता बनने का प्रयास तो नहीं। यदि ऐसा है तो ये इसमें कोई आश्चर्य की कोई बात नहीं। ये कांग्रेस का पुराना राजनीतिक नुस्खा है। इसे कांग्रेस समय-समय पर अमल में लाती रहती है। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। सोनिया गांधी का उदाहरण सामने है। भले ही सोनिया ने देश के विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया, लेकिन सभी को पता है कि देश का असली प्रधानमंत्री कौन है। मनमोहनजी से गुजारिश है कि हमारी बात का बुरा ना मानें, लेकिन कहना मजबूरी थी सो कह दिया। देश जवानों की मौत पर दुखी है। चिदंबरम इस गम के माहौल में इस्तीफा देकर क्या जताना चाहते हैं। चिदंबरम जी क्या आपको नहीं लगता कि आपके इस्तीफे से नक्सलियों का मनोबल ऊंचा हो जाएगा। जो गृहमंत्री कल तक नक्सलवाद को खत्म कर देने की बात कह रहा था वो आज इस्तीफा देकर भाग गया। हो सकता है आपके इस्तीफे से आपको जनता की सहानुभूति हासिल हो जाएगा लेकिन आपने इस्तीफे की पेशकश करके देशभक्तों को वाकई और दुखी कर दिया है। चिदंबरम जी जरा सोचिए ये वक्त है नक्सलियों से लोहा लेने की, न कि मैदान छोड़कर भाग जाने की। जनता आपकी तरफ देख रही है। जनता को नक्सलवाद के जहर से मुक्ति दिलाइए। यही एक गृहमंत्री की असली जिम्मेदारी है, नहीं तो सारी दुनिया कहेगी कि भारत के गृहमंत्री ने नक्सलियों को अपना पीठ दिखा दिया।